Sunday, October 9, 2011

Naam kaa matalab kyaa hotaa hai ?

कई बार जातक अपनी जन्म तारीख समय आदि भेजते है उनका नाम बिना राशि को देखे या परिवार के लोगो के द्वारा रख दिया जाता है लेकिन जब पहली बार उनकी कुंडली बनायी जाती है तो जो उनका नाम है वह या तो उनकी लगन की राशि का होता है या उनकी वास्तविक राशि का होता है या नवमांश में चन्द्रमा के अनुसार होता है.इलाहाबाद के एक सज्जन के मन में यही उत्कंठा है की उनके नाम का जन्म कुंडली के अनुसार क्या महत्व है.जन्म समय के अनुसार उनकी लगन वृष है गुरु उच्च का होकर कर्क राशि में तीसरे भाव में है,सूर्य बुध के साथ लगनेश शुक्र वक्री होकर सुख भाव में है केतु मंगल शत्रु भाव में है जो तुला राशि के है चन्द्रमा वक्री शनि के साथ ग्यारहवे भाव में है.राहू बारहवे भाव में विराजमान है.इस कुंडली के अनुसार राहू जीवन में एक नशा देता है जो नशा भाव के अनुसार और राशि के अनुसार होता है.मेष राशि का राहू है और बारहवे भाव में है बारहवा भाव जीवन में की जाने वाली उन्नति और जीवन में प्राप्त की जान वाली इच्छाओं से भी माना जाता है और जिस कारण से शान्ति मिले यानी मोक्ष मिले उस के बारे में भी अपनी कारण गति को पैदा करने के लिए भी माना जाता है.राहू के मेष राशि में होने के कारण कालपुरुष की कुंडली के अनुसार यह शरीर के बारे में नाम के बारे में पहिचान के बारे में अपने शरीर की शक्ति के बारे में पैदा होने वाले कुल के बारे में रंग रूप और मानसिक विकास के बारे में जानी जाती है,जो शरीर दूसरे के काम आये के बारे में भी मेष राशि का प्रभाव माना जाता है.राहू के बारहवे भाव में होने के कारण जातक का ध्यान अपने नाम के अर्थ और नाम को किस प्रकार से फैलाया जाए की जानकारी के लिए है.वैसे जातक की चन्द्र राशि मीन है और शनि वक्री होकर मीन राशि का प्रभाव हमेशा उच्चता के लिए ही माना जा सकता है,नीचे विचारों के लिए इस राशि का कोइ महत्व नहीं है.

मीन राशि का चंद्रमा जब वक्री शनि से अपनी युति को बनाता है तो जातक के मन में बुद्धि की मात्रा का अधिक होना माना जाता है जातक किसी भी बात को भावुकता से नहीं सोचता है बुद्धि का प्रयोग करने के बाद ही किसी बात को सोचता है और इसी बात से वह अपने जीवन के आयाम सही तरीके से प्राप्त करता चला जाता है.नाम के अक्षर भी नाम के अन्दर अपना महत्व देते है.उदाहरण के लिए देवेन्द्र नाम इन्द्र देव के लिए संबोधित है,द अक्षर मीन राशि का है इसके ऊपर ऐ स्वर की मात्रा शक्ति को प्रदर्शित करती है.दुर्गा सप्तशती के अनुसार ऐ में अं का बिंदु प्रयुक्त करने के बाद मारक शक्ति पालक शक्ति के रूप में परिवर्तित हो जाती है.काली जो संहारक देवी के रूप में मानी जाती है वे ही पालक माँ के रूप में अपना रूप प्रकट कर लेती है.देवी में भी पहला अक्सर दे होने से शक्ति का प्रकाट्य प्रदर्शित करता है.मीन राशि में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का मालिक शनि है और पहले पाए में इसका विकास होने के कारण यह बुध के रूप में प्रकट किया गया है,एक ही अक्षर के अन्दर द से मीन राशि जिसका स्वामी गुरु ऐ की मात्रा लगाते ही शनि और बुध का प्रभाव इस प्रकार से एक ही अक्षर के अन्दर गुरु बुध और शनि का प्रभाव मिल जाता है जिसके लिए गुरु ज्ञान के लिए बुध ज्ञान को तरीके से प्रयुक्त करने के लिए और शनि हमेशा के लिए स्थापित करने के लिए या कर्म करने के लिए माना जा सकता है,दूसरा अक्षर वे के अन्दर भी व् अक्षर वृष राशि का जिसका स्वामी शुक्र है रोहिणी नक्षत्र का असर ऐ की मात्रा लगाने से प्रकट हो जाती है जिसका स्वामी चंद्रमा है और तीसरा पाया आजाने से बुध इसका भी मालिक बन जाता है,इस प्रकार से शुक्र चन्द्र और बुध की युति दूसरे अक्षर में प्रकट हो जाती है.शुक्र से भौतिकता चन्द्र से मानसिक रूप से और बुध से तरीके से प्रयोग करने के लिए भौतिकता को मानसिक रूप से प्रयोग करने के लिए इस अक्षर का प्रयोग माना जा सकता है.अं की उपयोगिता के बारे में भी इस अक्षर के लिए एक शक्ति के रूप में पालन करता के रूप में अगर देखी जाए तो व्यक्ति के अन्दर मानसिक रूप से भौतिक शक्तियों को तरीके से प्रयोग करने के लिए दूसरो की पालना करने के लिए भी मानी जा सकती है.अंतिम अक्षर में द के साथ र का जुड़ना भी एक प्रकार से गुरु शुक्र का मिला रूप जिसमे ज्ञान और भौतिकता का मिला जुला असर देखने को मिलता है.इस प्रकार से एक नाम की महिमा को प्रकट करना भी एक बड़ी बात मानी जा सकती है.नाम के अनुसार जो शक्तिया जातक की जिन्दगी में मिलाती है उन्हें साक्षात रूप में अगर समझदारी से देखा जाए तो एक एक करके सभी शक्तिया अपने अपने समय पर प्रकट होने लगती है.

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