Saturday, October 15, 2011

भाग्येश और लगनेश का पापकर्तरी बनाम दिशाहीन जिन्दगी

प्रस्तुत कुंडली मेरठ मे पैदा होने वाले एक जातक की है,विद्या और बुद्धि का मालिक शनि लगन मे उच्च का होकर नीच का फ़ल देने वाला है,गुरु वक्री होकर नीच भाव मे उच्च का होकर नीच का फ़ल देने वाला बना हुया है,मंगल उच्च भाव मे होकर नीच राशि मे जाकर नीच का फ़ल देने वाला बन गया है,लगनेश शुक्र और भाग्येश बुध मंगल और राहु के बीच मे आकर पापकर्तरी योग मे अपनी स्थिति को दर्शाते है। यह ग्रह युति बहुत ही विचित्र कहलाती है,इस युति मे जन्म लेने वाले के लिये जो भी कारक बनते है वे हास्यापद बन जाते है और कुछ भी घटना जातक के साथ होने पर बडी ही विचित्र स्थिति बन जाती है। सबसे पहले उच्च के शनि का नीच भाव मे होने का कारण समझते है। तुला राशि का शनि उच्च का बन जाता है और जैसे ही वह लगन मे जाकर बैठता है अपनी उच्चता को नीचता मे बदल देता है। जातक दूसरे नम्बर का पुत्र है पहले नम्बर मे सूर्य स्वगृही होकर बडे भाई के भाव मे ही विराजमान है.बडे भाई के बारहवे भाव मे बुध शुक्र और नीच राशि का मंगल उच्च का होकर विराजमान है। बडे भाई के द्वारा बुध से जमीन शुक्र से खेती वाली और मंगल से कृषि यंत्रों से किये जाने की बात भी मिलती है साथ ही बुध और मंगल की युति से शनि केतु की युति के प्रभाव से गन्ने की खेती का होना मिलता है। सूर्य से राहु का नवे भाव मे होना एक दादा की पैदाइस में पिता के पांच भाइयों का होना और दादा का राज्य से सम्बन्धित कामो मे कार्य करना तथा दादा के द्वारा कानूनी कारणो से जमीन जायदाद के मामले मे जायदाद का अष्टम चन्द्र की युति से मृत्यु के बाद की जमीनो को अपने कब्जे मे लेने वाली बात को भी माना जा सकता है। मंगल बुध शुक्र की युति से चन्द्रमा जो वृश्चिक राशि का है के प्रभाव का सीधा सम्बन्ध होने के कारण चन्द्र जो शमशानी जमीन या मंगल कत्ल बुध बकरी शुक्र गाय आदि के रूप मे भी देखा जा सकता है। मंगल के द्वारा राहु के दसवे भाव मे होने के कारण एक धार दार हथियार के रूप मे भी माना जा सकता है,जो शनि केतु यानी पाडे आदि के कत्ल के रूप मे भी मंगल बुध और शुक्र की युति का प्रभाव भी देखा जा सकता है,अथवा इसी प्रकार के जानवरों का व्यवसाय भी माना जा सकता है.यही युति शनि के लिये भी मानी जाती है कि जब शनि उच्च का है और लगन मे विराजमान होकर नीच का फ़ल दे रहा है तो जो कार्य देखने मे उच्च के किये जाये लेकिन उनके फ़ल नीच के मिले तो वही ग्रह की असमंजस वाली स्थिति के प्रति माना जा सकता है। इसी प्रकार से गुरु जो मकर राशि का होकर कहने को तो नीच का है लेकिन मकर राशि मे गुरु जब वक्री हो जाता है तो वह उच्च का फ़ल देने लगता है लेकिन चौथे भाव मे आकर वह वक्री हो जाये तो वह नीच का फ़ल ही प्रदान करेगा। इसी प्रकार से मंगल के लिये भी माना जाता है कि दसवे भाव मे मंगल वैसे तो उच्च का कहलाता है लेकिन वह जब कर्क राशि मे स्थापित हो जाता है तो नीच का फ़ल देने लगता है और देखने मे तो कार्य उच्च के माने जाते है लेकिन वह हकीकत मे होते नीच के है। गुरु के प्रति फ़लादेश करने के लिये कहना पडेगा कि जातक देखने मे तो उच्च कुल का लगता है,लेकिन उसकी स्थिति अपने ही परिवेश मे वक्री होन के कारण विदेशी जैसी मिलती है। अपनी अधिक पढाई या शिक्षा के बाद वह निर्भर तो अपने समाज पर होता है लेकिन रहता वह विदेशी परिवेश जैसे माहौल में.

कार्य भाव मे शनि की नजर होने से शनि केतु के साथ शनि राहु के साथ शनि मंगल के साथ शनि बुध और शुक्र के साथ अपनी युति को दे रहा है। अक्सर शनि से दसवे भाव के ग्रह शनि की वक्री नजर से आहत हो जाते है और जब शनि इन्हे अपनी वक्र द्रिष्टि से देखता है तो यही माना जाता है कि जातक के दादा के किये गये कार्य जो राहु की द्रिष्टि से अपनी गतिविधि और शनि के साथ केतु के होने से दर्शाते है के प्रभाव से जातक के प्रति मेहनत करने के बाद भी जातक को किये गये कार्यों का फ़ल नही मिल पाता है। जैसे गुरु के वक्री होने के कारण जातक की पढाइया बडी ही सुगमता से हो गयी और जातक को बहुत ही अच्छी जगह पर कार्य भी मिला लेकिन ग्रहों के गोचर मे जाने से जैसे ही राहु की युति चन्द्र्मा से मिली राहु का असर जातक पर अपना बुरा प्रभाव देने लगा।

जातक की पूर्वजों के प्रति जो भी धारणा हो उसके द्वारा जो जीव हत्या वाले पाप है उनकी हाय से जातक के प्रति और जातक के परिवार के प्रति तब तक सही नही कहा जा सकता है जब तक कि जातक के पिता अपने द्वारा जातक के दादा के प्रति किसी धर्म स्थान मे जाकर उनकी गति वाली क्रियाओं को नही करते।


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